15 हजार साल पुराने वायरस का झुंड हो सकता है सक्रिय, दुनिया के लिए बड़े खतरे का संकेत

15 हजार साल पुराने वायरस का झुंड हो सकता है सक्रिय, दुनिया के लिए बड़े खतरे का संकेत

सेहतराग टीम

चीन में कोरोना वायरस के चलते दुनिया चिंतित है, लेकिन वैज्ञानिकों का नया शोध दुनिया के संभावित और बड़े खतरे की तरफ इशारा कर रहा है। वैज्ञानिकों ने तिब्बत में 15 हजार साल पुराने वायरस के समूह का पता लगाया है। कोल्ड स्प्रिंग हार्बर लेबोरेटरी द्वारा संचालित बॉयो आर्काइव डाटा बेस से जुड़े वैज्ञनिकों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लेशियर की बर्फ पिघल रही है और ये वायरस बाहर आ रहे हैं। आशंका है कि इससे बरसों पुरानी बीमारियां फिर से दुनिया को अपनी चपेट में ले सकती हैं।

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यहां छिपे हैं वायरस-

उत्तर पश्चिम तिब्बत के पठारों में स्थित एक बड़े ग्लेशियर की बर्फ पिघल रही है। शोधकर्ता बताते हैं कि यहां पर कभी न देखे गए 15 हजार साल पुराने वायरस मौजूद हैं। ग्लेशियर के मूल तक जाने के लिए वैज्ञानिकों ने ग्लेशियर के पठारों के करीब 50 मीटर तक ड्रिल किया है। शोधकर्ताओं का कहना है कि जब ग्लेशियरों की बर्फ पिघलेगी तब यह वायरस बाहर आएंगे तो यह दुनिया के लिए बड़ा संकट होगा। यह कई तरीके की बीमारियों के कारण बन सकते हैं।

वायरसों का है समूह-

यह 33 वायरसों का समूह है। यह 520 से 15 हजार साल पुराने हैं। जिन्होंने इस बर्फीले इलाके को अपन घर बना लिया है। चिंता की बात है कि इन 33 में से आधूनिक विज्ञान महज 5 के बारे में जानता है ,जब कि 28 ऐसे हैं, जो विज्ञान के लिए नए हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि बर्फ में दबे होने के कारण यह वायरस अलग-अलग जलवायु में खुद को जिंदा रख सकते हैं।

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दो नमूने और एक नतीजा-

अमेरिका से तिब्बत पहुंची वैज्ञानिकों की टीम ने 1992 और 2015 में ग्लेशियर से नमूने लिए थे। इनमें ग्लेशियर के टुकड़ों को ठंडे कमरों में रखा गया था। जहां एक को इथेलॉन से साफ किया गया और दूसरे को साफ पानी से धोया गया। ग्लेशियर की बाहरी परत हटते ही 15 हजार साल पुराने वायरस सामने आ गए।

जलवायु परिवर्तन बढ़ाएगा मुश्किल-

जलवायु परिवर्तन को लेकर विभिन्न मंचों से आवाज उठती रही है, लेकिन ग्लेशियर को पिघलने से रोकने हम कामयाब नहीं हो सके हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि अंटार्कटिका में ग्लेश्यिरों का पिघलना बहुत तेज है। 1980 की तुलना में यह 2019 में 6 गुना तेज हो चुका है। जिसका प्रभाव कई समस्याओं को जन्म दे रहा है। जलवायु परिवर्तन को तिब्बती पठार को प्रभावित करने वाला माना जाता है और यह 1970 के बाद से अपनी एक चौथाई बर्फ खो चुका है। यदि इसे रोका गया तो शेष दो तिहाई ग्लेशियर सदी के अंत तक खो सकते हैं।

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ऐसे आया वायरस-

2016 में रूस के ध्रुवीय इलाके में एथ्रेक्स फैला। जैविक युद्ध लड़ने में सक्षम फौज उतारनी पड़ी। 40 लोग अस्पताल में भर्ती कराने पड़े। कुछ की मौत हुई। 1000 से अधिक रेडियर भी मरे। दरअसल 70 साल पहले एक संक्रमित रेडियर के दफनाए शव से ये वायरस फैला था। इतने साल बाद जब उ. साइबेरिया में लू चली तो ये वायरस फिर से सक्रीय हुआ। रेडियर की लाश से एथ्रेक्स फैलने की वजह रूसी वैज्ञानिकों ने ग्लोबल वार्मिंग बताई।

 

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